Poem and Hymn of the Dark & New Age - Era.
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मैंने देखा वह युग..." (अंधकार युग की कविता) मैंने देखा वह युग..." (अंधकार युग की कविता) मैंने देखा एक ऐसा काल, जहाँ मन था काला, हृदय विकराल। जहाँ हृदयों पर पत्थर का बोझ, प्रेम भी बन गया सुख-संपदा की खोज। न था कोई सच्चा अपनापन, हर चेहरा दिखता औपचारिक जन। माताएँ खुद ममता मिटाएँ, पिता भी अपना स्नेह भुलाएँ। राजा बने निर्दय अत्याचारी, ताक़त के मद में मस्त सब अधिकारी। झूठ छलकता हर आदेश में, अपराध छिपा हर वेश-भेष में। निरपराध बंदीगृह में सड़ते, दोषी महलों में निर्भय हँसते। न्याय बना एक महा-तमाशा, जनता ठगी, खो बैठी आशा। क्रूरता मस्तक ऊँचा उठाए, दया कोने-कोने में कँपकँपाए। श्रद्धा, भक्ति बने मिथ्याचार, भक्त सहें उपहास बारंबार। जो हाथ जोड़ें, वे अपमानित हों, जो सत्य बोलें, वे प्रताड़ित हों। मैंने देखा पतन का वह दृश्य, जहाँ पिस रहा था ईश्वर का शिष्य। पर शोक के उस गहरे क्षण में, एक दीप जला तम के घन में। ईश्वर स्वयं धरा पर आए, घावों पर आशा के फूल खिलाए। ईश्वर को देख मैं रो पड़ा, वो बोले — “मत रो, देख, मैं आ गया। अब पीड़ा की यह समय जाएगी, सत्य की नयी सुबह आएगी। छल-कपट का पर्दा हटेगा, धर्म ...